ज्योतिष

शनि के बारे में आप क्या जानते है

Written by Bhakti Pravah

जन्मकुंडली में शनि की सुखदायक स्थितियां-
Û शनि और बुध की युति व्यक्ति को अन्वेषक बनाती है।
Û यदि शनि चतुर्थेश होकर कुंडली में बलवान हो तो जमीन-जायदाद का पूर्ण सुख देता है।
Û यदि शनि लग्नेश तथा अष्टमेश होकर बलवान हो तो जातक दीर्घायु होता है।
Û धनु, तुला और मीन लग्न में शनि लग्न में ही बैठा हो तो व्यक्ति को धनवान बनाता है।
Û वर्ष लग्न या जन्म लग्न में वृष राशि हो और शनि-शुक्र का योग हो तो यह स्थिति लाभदायक होती है।
Û शुक्र और शनि में मित्रता है, इसलिए वृष या तुला लग्नस्थ शनि शुभ फल देता है।
Û छठे, आठवें या बारहवें भाव का कारक शनि इनमें से किसी भी भाव में हो तो लाभदायक होता है।
Û कन्या लग्न में आठवें भाव का शनि व्यक्ति को धन सुख देता है। यदि वक्री हो तो अपार संपत देता है।
Û मीन, मकर, तुला या कुंभ लग्न में, शनि लग्न में ही हो तो व्यक्ति का जीवन सुखमय होता है और उसे  मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।
Û शनि यदि केंद्र में स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या अपनी उच्च राशि में हो तो शश नामक पंच महापुरुष योग कानिर्माण करता है। यह तुला राशि में 20 अंश तक होता है। इस योग में जन्मे जातक दीर्घायु होते हैं, उनका रंग सांवला तथा आंखें बड़ी होती हैं। उनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है। यह योग गरीब परिवार में जन्मे व्यक्ति को भी उन्नति के शिखर तक ले जाता है। जातक उच्च स्तरीय नेता हो सकता है।

यदि कुंडली में शनि के साथ गुरु, शुक्र, बुध एवं चंद्र भी शुभ और बलवान हों तो व्यक्ति सफलता की सीढ़ियां आसानी से चढ़ता चला जाता है।
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम का लग्न धनु है। उन्हें शनि ने अन्वेषक बनाया और देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचाया।
वैसे भी कर्क एवं धनु लग्न के जातक अपने क्षेत्र में सर्वाधिक सफल होते हैं। धनु एवं मीन राशियों को छोड़कर शेष राशियों के लिए शनि केंद्रेश या त्रिकोणेश होता है। इस स्थिति में यदि उसका संबंध किसी अन्य केंद्रेश या त्रिकोणेश से हो तो फल अत्यंत शुभ होता है। ऐसे में वह सर्वाधिक प्रगतिदायक बन जाता है। उसकी दृष्टि यदि किसी अन्य
केंद्रेश या त्रिकोणेश के आधिपत्य वाली किसी राशि पर भी हो तो फल शुभ होता है।
प्रसिद्ध भारतीय ज्योतिषी वराह मिहिर ने अपने गं्रथ वृहद् संहिता में शनि की शुभाशुभता का विस्तार से वर्णन किया है। यह बुध, शुक्र और राहु का मित्र तथा सूर्य, चंद्र और मंगल का शत्रु है। गुरु और केतु के साथ समभाव रखता है।
यह तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में श्रेष्ठ फल देता है। अन्य किसी घर में इसका फल शुभ नहीं होता। यह मृत्यु का कारक ग्रह है। यह मकर राशि में अधिक बली होता है। यह पुष्य, अनुराधा और उŸारा भाद्रपद नक्षत्र का स्वामी है। यह नपंुसक और तामस स्वभाव वाला ग्रह है। इसे कालपुरुष का दुख माना गया है। कालचक्र में शनि कर्म और उसके परिणाम का प्रतीक है। गोचर में यदि यह जन्म या नाम राशि से 12वां हो या जन्म राशि में अथवा उससे दूसरा हो तो उन राशि वालों पर साढ़े साती प्रभावी होती है। जब शनि गोचर में जन्म या नाम राशि से चौथा या 8वां होता है तब यह अवधि ढैया कहलाती है। शनि की साढ़े साती या ढैया व्यक्ति को प्रेरित कर आत्मचिंतन, नैतिकता एवं धार्मिकता की ओर ले जाती है। शनि एक राशि में ढाई वर्ष रहता है। दीर्घायु व्यक्ति के जीवन में शनि की साढ़ेसाती प्रायः तीन बार आती है। साढ़े साती या ढैया का प्रभाव सामान्यतः कार्यक्षेत्र, आर्थिक स्थिति एवं परिवार पर पड़ता है। तृतीय साढ़े साती स्वास्थ्य को अधिक प्रभावित करती है। यह प्रभाव व्यक्ति की कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार शुभ या अशुभ होता है। गोचर में तीसरा, छठा या ग्यारहवां शनि हमेशा शुभ एवं लाभदायी होता है। शनि की साढ़ेसाती से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। यह हमेशा कष्टदायी नहीं होती है। शनि जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रह है। इस आलेख में शनि की विभिन्न स्थितियों के फल का निरूपण किया गया है। शनि का अन्य ग्रहों के साथ साहचर्य, भावों और राशियों के साथ-साथ सभी लग्नों पर इसके प्रभाव के अतिरिक्त साढ़ेसाती व ढैय्या की चर्चा भी की गई है। शास्त्रों में वर्णन है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी और पुरुष प्रधान ग्रह है। इसका वाहन गिद्ध है। शनिवार इसका दिन है। स्वाद कसैला तथा प्रिय वस्तु लोहा है। शनि राजदूत, सेवक, पैर के दर्द तथा कानून और शिल्प, दर्शन, तंत्र, मंत्र और यंत्र विद्याओं का कारक है। ऊसर भूमि इसका वासस्थान है। इसका रंग काला है। यह जातक के स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है। यह मकर और कुंभ राशियों का स्वामी तथा मृत्यु का देवता है। यह ब्रह्म ज्ञान का भी कारक है, इसीलिए शनि प्रधान लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हैं।

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