अध्यात्म ज्योतिष

आज शनिवार है. आइए जानते है शनिदेव के बारे में पौराणिक बातें

Written by Bhakti Pravah

शनि देव सूर्य देव के पुत्र है तथा यम के बड़े भाई, यमुना एवं भद्रा इनकी बहने है. इनका जन्म सौराष्ट्र गुजरात में हुआ है. शनि देव पश्चिम दिशा का स्वामी है. शनि देव घाटियों वन प्रदेशों दुर्गम गुफाओं, श्मशान, कोयला खान, बंजर भूमि, मरूप्रदेश आदि में निवास करना पसंद करता है. शनि देव इस ब्रम्हांड में बृहस्पति के बाद दूसरा बड़ा ग्रह है और पृथ्वी से 14260000 किलोमीटर दूर. शनि देव सूर्य देव की परिक्रमा 29 साल 6 महीने में पूरी करता है, शनि देव का व्यास 120500 किलोमीटर है.

इस ब्रह्मांड में वायु से संबंधित जितने भी रोग होते हैं, सब शनि देव के प्रकोप से ही होते हैं. इनके पिता पूर्व दिशा के स्वामी है जो सूर्य भास्कर कहलाते हैं. शनि देव पश्चिम के स्वामी है तो पिताश्री पूर्व दिशा के स्वामी है.  इन दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है. जब भी शनि देव गोचर में सूर्य के साथ रहता है तो राजाओं सरकारी अफसरों की बुद्धि भ्रष्ट कर देते है. शनि देव की आदत सर्वत्र पीछा और पीड़ा पहुंचाने की रहती है.

मैं (शनि देव ) अन्न धान्य के भाव बढ़ा देता हूं. मैं वर्षा का अभाव करा देता हूं, राजाओं में युद्ध करवा देता हूं जन्म कुंडली में पिता के साथ रहने पर पिता-पुत्र की आपस में बनने नहीं देता हूं. मैं रोहिणी भेदन कर दूं तो पृथ्वी पर 12 वर्ष तक घोर दुर्भिक्ष पड़ता है. मेरा स्वभाव इंद्रनील मणि के समान है, मैं सिर पर सोने का मुकुट गले में माला और शरीर पर नीले रंग के वस्त्रों से सुशोभित रहता हूं. मैं अपने हाथ में धनुष बाण त्रिशूल और बार मुद्रा धारण किए होता हूं. मेरा रक्षक लोहे का बना होता है तथा मेरा वाहन गिद्ध पक्षी है. मेरा गोत्र कश्यप है. मेरे गुरु महाकाल शिव हैं. मेरे अभिन्न मित्र हैं कालभैरव बालाजी.

मेरे प्रिय नक्षत्र पुष्य नक्षत्र हैं- अनुराधा और उत्तराभाद्रपद. जब मैं तुला राशि में विचरण करता हूं तो उच्च का कहलाता हूं. मेष राशि में होने पर नीच का कहलाता हूं. मैं एकांत, गंभीर, दूरदर्शी, त्यागी, तपस्वी, स्पष्टवादी और न्याय प्रिय हूं. मैं कलयुग में बहुत प्रभावित हूं. आज के युग में पेट्रोलियम पदार्थों का, पेट्रोलियम पदार्थों का महत्व मेरे ही कारण है. मैं लोहा, इस्पात, खनिज, फैक्ट्री, कारखाने, रसायन, चमड़ा व्यापार आदि का स्वामी हूं. आप जो तेल खाते हो, गाड़ी वाहनों में जो तेल जलाते हो वह सब मेरी कृपा से ही आपको मिल रहा है. कोई अपने घर या परिवार या समाज में किसी वृद्ध को सताता है तो समझ लो मुझे सता रहा है. जब मैं सताया जाऊंगा तो समझ लो कि तुम पर आफत आने वाली है. दुनिया की कोई भी ताकत तुमको इस आफत से बचा नहीं सकती. इसलिए उनको ना सताओ, उनकी सेवा करोगे तो मेरी सेवा अपने आप हो जाएगी. मैं प्रसन्न हुआ तो तुम को रंक से राजा बना दूंगा. तुमको सारे अधिकार दिलवा दूंगा. तुमको सत्ता का सही सुख दिलवा दूंगा.

मुझको तेल अति प्रिय है. मैं कैसेली एवं कड़वी चीजों को बहुत पसंद करता हूं. मुझे सरसों एवं तिल का तेल बहुत पसंद है. मेरे मंदिर या पीपल के पेड़ के नीचे 40 दिनों तक सरसों के तेल का बड़ा दीपक जलाने से मैं बहुत प्रसन्न होता हूं. 41वे दिन आपकी सभी मनोकामना पूर्ण होने लगेंगी. तथा सभी प्रकार के कष्ट भी दूर होने लगेंगे. मुझ पर विश्वास रखो मेरे यहां देर है, पर अंधेर नहीं जो गरीबों व अन्य विभिन्न व्यक्तियों की सेवा करेगा तथा वृद्धा आश्रम में उचित दान देगा, उस पर मेरी कृपा हमेशा बनी रहेगी. ऐसा व्यक्ति एक बार जो धन एकत्र कर लेगा उसका धन आसानी से खर्च नहीं होगा. वह व्यक्ति पीढ़ी-दर-पीढ़ी धनवान रहेगा.

मैं शनि हूं अच्छे के लिए अच्छा तथा बुरे के लिए बहुत बुरा हूं. मेरी अवेहलना जो करेगा उस का भला मैं कभी ना होने दूंगा.

एक बार लक्ष्मीजी ने शनिदेव से प्रश्न किया कि हे शनिदेव, मैं अपने प्रभाव से लोगों को धनवान बनाती हूं और आप हैं कि उनका धन छीन भिखारी बना देते हैं. आखिर आप ऐसा क्यों करते हैं? लक्ष्मीजी का यह प्रश्न सुन शनिदेव ने उत्तर दिया- ‘हे मातेश्वरी! इसमें मेरा कोई दोष नहीं. जो जीव स्वयं जानबूझकर अत्याचार व भ्रष्टाचार को आश्रय देते हैं और क्रूर व बुरे कर्म कर दूसरों को रुलाते तथा स्वयं हंसते हैं, उन्हें समय अनुसार दंड देने का कार्यभार परमात्मा ने मुझे सौंपा है. इसलिए मैं लोगों को उनके कर्मों के अनुसार दंड अवश्य देता हूं. मैं उनसे भीख मंगवाता हूं, उन्हें भयंकर रोगों से ग्रसित बनाकर खाट पर पड़े रहने को मजबूर कर देता हूं.

इस पर लक्ष्मीजी बोलीं- ‘मैं आपकी बातों पर विश्वास नहीं करती. देखिए, मैं अभी एक निर्धन व्यक्ति को अपने प्रताप से धनवान व पुत्रवान बना देती हूं. लक्ष्मीजी ने ज्यों ही ऐसा कहा, वह निर्धन व्यक्ति धनवान एवं पुत्रवान हो गया.
तत्पश्चात लक्ष्मीजी बोलीं- अब आप अपना कार्य करें. तब शनिदेव ने उस पर अपनी दृष्टि डाली. तत्काल उस धनवान का गौरव व धन सब नष्ट हो गया. उसकी ऐसी दशा हो गई कि वह पहले वाली जगह पर आकर पुनः भीख मांगने लगा. यह देख लक्ष्मीजी चकित रह गईं. वे शनिदेव से बोलीं कि इसका कारण मुझे विस्तार से बताएं.

तब शनिदेवजी ने बताया- ‘हे मातेश्वरी, यह वह इंसान है जिसने पहले गांव के गांव उजाड़ डाले थे. जगह-जगह आग लगाई थी. यह महान अत्याचारी, पापी व निर्लज्ज जीव है. इसके जैसे पापी जीव के भाग्य में सुख-संपत्ति का उपभोग कहां है. इसे तो अपने कुकर्मों के भोग के लिए कई जन्मों तक भुखमरी व मुसीबतों का सामना करना है. आपकी दयादृष्टि से वह धनवान- पुत्रवान तो बन गया परंतु उसके पूर्वकृत कर्म इतने भयंकर थे जिसकी बदौलत उसका सारा वैभव देखते ही देखते समाप्त हो गया. क्योंकि कर्म ही प्रधान है और कर्म का फल भोगने के लिए सभी बाध्य हैं. लेकिन मैंने इसे इसके दुष्कर्मों का फल देने के लिए फिर से भिखारी बना दिया. इसमें मेरा कोई दोष नहीं, दोष उसके कर्मों का है.

शनिदेवजी पुनः बोले- हे मातेश्वरी, ऐश्वर्य शुभकर्मी जीवों को प्राप्त होता है. जो लोग महान सदाचारी, तपस्वी, परोपकारी, दान देने वाले होते हैं, जो सदा दूसरों की भलाई करते हैं और भगवान के भक्त होते हैं, वे ही अगले जन्म में ऐश्वर्यवान होते हैं. मैं उनके शुभ कर्मों के अनुसार ही उनके धन- धान्य में वृद्धि करता हूं. वे शुभकर्मी पुनः उस कमाए धन का दान करते हैं, मंदिर व धर्मशाला आदि बनवाकर अपने पुण्य में वृद्धि करते हैं. इस प्रकार वे कई जन्मों तक ऐश्वर्य भोगते हैं. हे मातेश्वरी! अनेक मनुष्य धन के लोभ में पड़कर ऐश्वर्य का जीवन जीने के लिए तरह-तरह के गलत कर्म कर बैठते हैं, जिसका नतीजा यह निकलता है कि वे स्वयं अपने कई जन्म बिगाड़ लेते हैं. भले ही मनुष्य को अपना कम खाकर भी अपना जीवन यापन कर लेना चाहिए लेकिन बुरे कर्म करने से पहले हर मनुष्य को यह सोच लेना चाहिए इसका परिणाम भी उसे खुद ही भोगना पड़ेगा.

इस प्रकार शनिदेव के वचन सुनकर लक्ष्मीजी बहुत प्रसन्न हुईं और बोलीं- हे शनिदेव! आप धन्य हैं. प्रभु ने आप पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है. आपके इस स्पष्टीकरण से मुझे कर्म-विज्ञान की अनेक गूढ़ बातें समझ में आ गईं. ऐसा कहते हुए लक्ष्मीजी अंतर्ध्यान हो गईं.

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