ज्योतिष

आइये देखते है कुंडली से लाभ के योग

Written by Bhakti Pravah

कुंडली में क्रमश: दूसरे व ग्यारहवें भाव को धन स्थान व आय स्थान कहा जाता है। इसके साथ ही आर्थिक स्थिति की गणना के लिए चौथे व दसवें स्थान की शुभता भी देखी जाती है। यदि इन स्थानों के कारक प्रबल हों तो, अपना फल देते ही हैं। निर्बल होने पर अर्थाभाव बना रहता है विशेषत: यदि धनेश, सुखेश या लाभेश छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो या इसके स्वामियों से युति करें तो धनाभाव, कर्ज व परेशानी बनी ही रहती है।
लाभ के योग

ग्यारहवाँ स्थान आय स्थान कहलाता है। इस स्थान में स्थित राशि व ग्रह पर आय स्थिति निर्भर करती है। इसका स्वामी निर्बल होने पर कम आय होती है। यदि यह स्थान शुभ राशि का है या शुभ ग्रह से दृष्ट है तो आय सही व अच्छे तरीके से होती है। यदि यहाँ पाप प्रभाव हो तो आय कुमार्ग से होती है। दोनों तरह के ग्रह होने पर मिलाजुला प्रभाव रहता है।
इसी तरह यदि लाभ भाव में कई ग्रह हो या कई ग्रहों की दृष्टि हो तो आय के अनेक साधन बनते हैं। हाँ, यदि शुभ आयेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो या आयेश कमजोर हो तो आय के साधन अवरुद्ध ही रहते हैं। आयेश शुभ ग्रहों के साथ हो, शुभ स्थान में हो तो भी आय के साधन ‍अच्छे रहते हैं।
* शनि-मंगल के कारण बनने वाले योग व्यक्ति को साधारण धनवान बनाते हैं।
* सूर्य-चंद्रमा से बनने वाले योग व्यक्ति को लखपति बना देते हैं।
* बुध, बृहस्पति और शुक्र से बनने वाले योग व्यक्ति को अथाह धन-संपदा का लाभ कराते हैं।
शुभ धन दायक योग:

शुक्र का एक या अधिक लगनो से बारहवेम भाव में विराजमान होना.
लग्न दूसरे नवें और ग्यारहवें भाव के बलवान स्वामियों का परस्पर युति अथवा द्रिष्टि द्वारा संबन्ध होना.
पाराशरीय योगों के बाहुल्य होना,जैसे नवें,दसवें भाव के स्वामियों का सम्बन्ध चौथे पांचवें भावों के स्वामियों का सम्बन्ध,शुभ सप्तमेश और नवमेश का सम्बन्ध,सप्तमेश और पंचमेश का आपसी सम्बन्ध भी ध्यान में रखना पडता है.

खराब भावों तीसरे,छठे,आठवें,और बारहवें, के स्वामियों का अपनी राशियों से बुरे भावों अथवा दूसरे बुरे भावों में विराजमान होना,और केवल बुरे भावों के बुरे ग्रहों के द्वारा ही देखा जाना,उदाहरण के लिये मेष लग्न हो और बुध आठवें भाव में पडा हो,और शनि के पाप प्रभाव में हो तो बुध बहुत ही कमजोर हो जायेगा,कारण वह एक तो अनिष्टदायक आठवें भाव में है,दूसरे वह शत्रु राशि में है,तीसरे वह शनि द्वारा द्रिष्ट है,चौथे वह छठे स्थान से तीसरा होकर छठे के लिये बुरा है,ऐसी स्थिति में बुध की यह निर्बल स्थिति तीसरे और छठे भावों की अशुभता को खत्म करने के कारण विपरीत राजयोग को पैदा करेगी और धन दायक स्थिति पैदा करेगी.
लग्न के स्वामी चन्द्र लग्न के स्वामी,सूर्य लग्न के स्वामी,और नवमांश में लग्न,चन्द्र लग्न,और सूर्य लग्न, के स्वामियों का परस्पर सम्बन्ध भी धन के मामले में सूचना देगा.
शुक्र का गुरु द्वारा बारहवें बैठना.
चार अथवा चार से अधिक भावों के स्वामियों द्वारा खुद को देखा जाना.
अधियोगों की उपस्थिति यानी सूर्य से लग्न से चन्द्र से सातवें और आठवें शुभ ग्रहों की स्थिति का होना.
सुदर्शन पद्धति से तीनो ही लग्नों से किसी ग्रह का शुभ बन जाना.
किसी भी शुभ ग्रह द्वारा मूल्य का प्राप्त कर लेना,अर्थात दूसरे और ग्यारहवें स्थान के अधिपति गुरु द्वारा युक्त होना या देखा जाना,अथवा बुध द्वारा युक्त होना या देखा जाना,अथवा सूर्य,चन्द्र या नवांश के राशि स्वामी का गुरु के द्वारा अधिष्ठित होना.
सूर्य अथवा चन्द्र का नीच भंग होना.
किसी उच्च ग्रह का शुभ स्थान में होना तथा उस स्थान के स्वामी का पुन: उच्च में जाना

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