अध्यात्म

बच्चो में आत्मविश्वास की कमी कारण और उपाय

Written by Bhakti Pravah

आपके बच्चे की शिकायत होती है कि स्कूल में हमेशा उसका लंच कोई बच्चा खा लेता है, कोई उसकी चीजें चुरा लेता है, तो कोई उसके कपड़ो को गंदा कर देता है। स्कूल के शुरुआती दिनों में अकसर बच्चों का संकोच कब उनकी झिझक में बदल जाता है, पता ही नहीं चलता। आप जब बच्चे को स्कूल ले जाते हैं तो वह रोता है, टीचर से बात नहीं करता, लंच पूरा नहीं करता जैसी कई बाते हैं जो शुरू में तो हर बच्चे के व्यवहार में इस तरह के बदलावों को सामान्य माना जाता है लेकिन इन्हें अनदेखा करने से कई बार बच्चों की यही झिझक उन्हें दब्बू बना देती है।

कभी-कभी बच्चे में अनावश्यक व बिना किसी कारण के ही भय, संकोच और दब्बूपन पाया जाता है। वे अपनी सही बात तक माता-पिता, मित्र, शिक्षक या घर के अन्य लोगों के सामने नहीं रख पाते हैं। लोगों के सामने नहीं रख पाते हैं।

कभी-कभी बच्चे भीरु एवं भयभीत माता-पिता के कारण भी हो जाया करते है। उन्हें वे भूत-प्रेत की डरावनी कहानियाँ सुनाकर या डर बता कर भयग्रस्त कर दिया करते हैं। बच्चे को बार-बार निरुत्साहित करने से भी वे भीरु प्रवृत्ति के बन जाते हैं। इसके निवारण के लिए अभिभावक आत्मविश्वास से भरपूर, साहसिक और वीर कहानियाँ बच्चों को सुनाया करें।

बच्चों को छोटे- छोटे काम सुपुर्द करके उनमें आत्मविश्वास की भावना जाग्रत करना चाहिए। ऐसा करते रहने से वे साहसी आत्मविश्वासी एवं कर्मठ बनने लगेंगे साथ ही ज्योतिषीय निदान भी लेनी चाहिए। अगर इसे ज्योतिषीय नजरिये से देखें तो किसी भी जातक की कुंडली में अगर उसका तीसरे स्थान का स्वामी छठवे, आठवे या बारहवे स्थान पर बैठ जाए अथवा इस स्थान पर बैठकर राहु से आक्रांत हो जाए तो स्वभाव में दब्बूपन आ सकता है।

यदि आपके बच्चे की इस प्रकार की शिकायत हो अथवा वह स्कूल जाने से डरे या बाहर के लोगों से हमेशा एक दूरी बनाकर रहे है तो उसकी कुंडली का विश्लेषण कराकर आवश्यक ज्योतिषीय निदान जरूर लेना चाहिए, जिससे दब्बूपन के कारण जीवन में अहित होने से रोका जा सके। दब्बूपन को रोकने के लिए हनुमान चालीसा का नियमित पाठ कराना, हनुमान मंदिर में दर्शन कराना तथा कुंडली के तीसरे स्थान के स्वामी से संबंधित ग्रह दान करने से दब्बूपन को रोका जा सकता है।

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