यह सत्य है कि हमारे शरीर मे स्थित 10 इंद्रियों मे से ये आंखे ही सबसे ज्यादा पाप की जिम्मेदार होती है । जैसे वाम नासिका चन्द्र से संचालित है उसी प्रकार हमारी वायी आँख भी चन्द्र से संचालित होती है । तथा दायी आँख सूर्य से संचालित होती है । जब हमारी चन्द्र नाड़ी चलती है तो हमारे शरीर मे शांति और प्यार का भाव उत्पन्न होता है तथा हमारी आंखो मे प्यार और शांति आ जाती है । और जब सूर्य नाड़ी का संचार होता है तो अचानक शरीर और आंखो मे क्रोध उत्पन्न हो जाता है ।
कई बार आपने देखा होगा कि अच्छे माहोल मे बात बात करते करते ही अचानक झगड़ा हो जाता है । और प्यार की बातों मे क्रोध आ जाता है । ऐसा तभी होता है जब नाड़ी का संचार बदल जाता है । और आंखो का देखने का नजरिया तुरंत बदल जाता है ।
हमारी आंखो के पीछे एक पीला पटल होता है । उसके पीछे मन होता है और मन के पीछे बुद्धि होती है और बुद्धि का संबंध चित से होता है । आंखे जैसा बुरा या भला देखती है वो घटना संचित हो जाती है । आंखे जैसा देखती है वैसा भाव उत्पन्न होता है । जैसा भाव उत्पन्न होगा वैसा ही मन उस भाव को बुद्धि को फॉरवर्ड कर देता है । बुद्धि उस भाव का फैसला करके चित को फॉरवर्ड कर देती है । ये सभी घटनाए एक साथ घटित हो जाती है ।
आंखो से 24 प्रकार की तरंगे निकलती है तथा आंखो का 36 प्रकार की नाड़ियो के साथ संबद्ध होता है उन नाड़ियो का संबंध प्रकृति के साथ होता है । अगर आंखे न होती तो बुरा या भला हम देख ही नहीं पाते । अगर देख न पाते तो पाप भी कम होते । एक अंधा आदमी किसी की हत्या कर देता है तो उस अंधे आदमी की आंखे उस हत्या के खोपनाक मंजर को देख नहीं पाती है । इसलिए उसके मन मे उस पाप का मंजर दर्दनाक तरीके से संचित नहीं हो पाता है ।
जैसे धृतराष्ट्र जन्म से अंधा था । वो महाभारत के युद्ध को सुनकर ही इतना आवेश और क्रोध मे था कि उसने अपने प्रतिशोध की आग पाप से भीम को मार दिया होता । अगर धृतराष्ट्र अंधा न होता और युद्ध मे सामिल होता तो उसकी आंखे इस मंजर को न देख पाती तो शायद धृतराष्ट्र का पाप बहुत ज्यादा होता ।
आंखो के पाप का मंजर द्रोपदी के चीर हरण के समय देखने को मिलता है । जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तो उस द्रश्य को महात्मा विदुर और युधिस्टिर देख न सके और अपनी आंखे बंद कर ली थी । बाकी भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य और कृपाचार्य ने अपनी आंखे झुका ली थी । लेकिन भीम , नकुल , सहदेव और अर्जुन ने उस द्रश्य को अपनी खुली आंखो से देखा तो उन्होने पापियो को मारने की प्रतिज्ञा ली थी । इसलिए आंखे ही पाप और प्रतिशोध का कारण बनती है । इसलिए कोशिस करनी चाहिए इन आंखो से बुरा न देखा जाये ।
इसलिए जब किसी अपराधी को फांसी पर या सूली पर चढ़ाया जाता है तो उसकी आंखे बांध दी जाती है । क्योकि आंखे खुली रहेंगी तो वो आदमी उस खोपनाक पापी मंजर को देखेगा तो प्रतिशोध चित मे संचित हो जाएगा । और वो आदमी जब पुनर्जन्म लेगा तो बदले की भावना के तहत उस प्रतिशोध का बदला किसी न किसी रूप मे अगले जन्म मे अवश्य ही लेगा । जैसे अंबा ने भीष्म पितामह से महाभारत के युद्ध मे शिखंडी बनकर बदला लिया था ।
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