अध्यात्म

पूर्वजन्म सन्तान फल

Written by Bhakti Pravah

पूर्व जन्म के कर्मों से ही हमें इस जन्म में  माता-पिता, भाई-बहिन,पति पत्नी- प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते है। सब मिलते है। 
क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।

वेसे ही संतान के रूप में हमारा कोई पूर्व जन्म का सम्बन्धी ही आकर जन्म लेता है। जिसे शास्त्रों में चार प्रकार का बताया गया है।

1) ऋणानुबन्ध :- पूर्व जन्म का कोई एसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो तो वो आपके घर में संतान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो।

2) शत्रु पुत्र :- पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में संतान बनकर आयेगा औए बडा होने पर माता पिता से मारपीट झगडा या उन्हे सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा !

3) उदासीन :- इस प्रकार की सन्तान माता पिता को न तो कष्ट देती है ओर ना ही सुख। विवाह होने पर यह माता- पिता से अलग होजाते है।

4) सेवक पुत्र :- पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा कि है तो वह अपनी कि हुई सेवा का ऋण उतारने के लियेआपकी सेवा करने के लिये पुत्र/पुत्री बनकर आता है। आप यह ना समझे कि यह सब बाते केवल मनुष्य पर ही लागु होती है।

इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव भी आ सकता है। जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा कि है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है। यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसके दूध देना बन्द करने के पश्चात उसे घर से निकाल दिया हो तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी। यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा। इस लिये जीवन में कभी किसी का बुरा नहीं करे।

क्यों कि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे। उसे वह आपको सौ गुना करके देगी। यदि आपने किसी को एक रूपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रूपये जमा हो गये है।
यदि आपने किसी का एक रूपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रूपये निकल गये।

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